उस तरफ नेमतों की बारिश है।
इस तरफ भूख की गुज़ारिश है।।
चार पैसे कमा लिये जब से,
मानता खुद को, वो तो दानिश है।।
छीन लेते हैं कौर भी मुँह का,
या खुदा किस तरह की साज़िश है।।
देखिए तो चलन जमाने का,
इल्म से भी बड़ी सिफ़ारिश है।।
देख कर मुस्कुरा दिया उसने,
मानता हूँ ‘मृदुल’, नवाज़िश है।।