भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस दिन शायद... / स्वाति मेलकानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 26 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वाति मेलकानी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

     अपने ख्वाबों में उभरते
     अक्स में झाँककर
     देखूँगी
      अपने भीतर तुम्हारा होना
     और
     गर्म हवाओं में
     घुलती नमी से
     नापूँगी तुम्हारी नजदीकियाँ।
     महसूस करूँगी तुमसे दूर होना
     जब जाती रात के
     कदमों की आहट सुनकर
     चांद छिप जाएगा
     न जाने कहाँ...
     जिस दिन
     पाले की सैकड़ों परतें
     चढ़ जाएँगी सूरज पर
     जैसे कोई मौसम आकर
     ठहर गया हो मेरे मन में।
     जिस दिन सुबह जागकर
     तुम पाओगे
     मेरे सिरहाने में बूँद ओस की
     उस दिन शायद
     मैं भी प्यार करूँगी तुमसे।