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"उस दिन / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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चंचल रस धारा!
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उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी!
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जिस दिन अरुण अधरों से
 
जिस दिन अरुण अधरों से
तुमने हरी व्यथाएं;
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कर दीं प्रीत-गीत में परिणित
 
कर दीं प्रीत-गीत में परिणित
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उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी!
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जिस दिन तुमने बाहों में भर
 
जिस दिन तुमने बाहों में भर
 
तन का ताप मिटाया;
 
तन का ताप मिटाया;
प्राण कर दिए पुण्य--
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प्राण कर दिए पुण्य
सफल कर दी मिट्टी की काया!
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उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी!
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साध हो चुकी पूरी !
  
 
'''1945 में रचित
 
'''1945 में रचित
 
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13:20, 23 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी !

जिस दिन तुमने सरल स्नेह भर
मेरी ओर निहारा;
विहंस बहा दी तपते मरुथल में
चंचल रस धारा !
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी !

जिस दिन अरुण अधरों से
तुमने हरी व्यथाएँ;
कर दीं प्रीत-गीत में परिणित
मेरी करुण कथाएँ !
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी !

जिस दिन तुमने बाहों में भर
तन का ताप मिटाया;
प्राण कर दिए पुण्य —
सफल कर दी मिट्टी की काया !
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
साध हो चुकी पूरी !

1945 में रचित