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उस पार-1 / उषारानी राव

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दूरअनंत जलराशि के उस पार परदेश में
और ज्यादा पैसा होगा
सुविधाओं से
संपन्न जीवन
खाने-पहनने की
कोई कमी नही
खुशनुमा तस्वीरें उजागर होने लगतीं
गाँव की छाती पर
खड़े
कई नये
मकान
परदेस से कमाये गये पैसों से
वह जो परदेस से
लौट रहा होता
है अपनों की झलक
के लिए
गाँव की जमीन पर पाँव रखते
ही
बाबुल के घर -सा अहसास से
भर उठता है
यहाँ त्योहार में गाँव का गाँव
हुलस जाता
गाँव -डगर में उड़ती धूल
नाच -गाने में बजते ढोल
धान के खेत की महक
कितना मनभावन !
जाने कैसे ?सोचा होगा
परदेस में बसने का
अभी भी गरीब की
मिट्टी सूखी है
सपने नम हैंयहाँ
बाज़ारी तिलस्म में लूटेरे
हैं पहरेदार !
सत्ता की
नीतियों का अंदाज़
है हमलावर
लौटें तो क्या होगा हासिल ?
दो दिशाओं में खुलते हैं दरवाज़े
हमेशा
जितना अंदर जाने के लिए
उतना बाहर आने के
लिए