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उस पार / कविता भट्ट

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दिवस के उस पार
जीवन का विस्तार
ढलती सन्ध्या का निशा से मिलाप
दिवस के उस पार

सुरमई आँचल बादल का थामे
चाँदनी रूपसी की खनकती
चूड़ियों की रेखा का आभास
दिवस के उस पार

चमकते नर्म अधरों की मुस्कान
सिंदूर की रेखा महकती मांग का जादू
एक नई पहचान, मेहँदी की सुगन्ध
दिवस के उस पार

किसी के साथ चलने
किसी का नाम लेकर पुकारने
किसी के साथ जीवन गुजारने की ललक
दिवस के उस पार

मखमली महकते वस्त्रों की
झिलमिल चूनर में लगे सितारों सी
महकते सावन की हवाओं सी
एक सपने का अपना बनाने की चाहत

दिवस के उस पार
जिससे कभी कोई रिश्ता न था
एक दूसरे से अपरिचित
उसको अपनाने की रंगीन चाहत
दिवस के उस पार

मुस्कुराहटें पीड़ा भरी
निःसंवेदन और उलझन
नैनों की छन-छन बरसात
कभी स्नेह-कभी दुत्कार
दिवस के उस पार