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उस पे पत्थर खाके क्या बीती ज़फ़र देखेगा कौन / ज़फ़र गोरखपुरी

उस पे पत्थर खाके क्या बीती ज़फ़र देखेगा कौन।
फल तो सब ले जाएँगेज़ख़्मे-शजर देखेगा कौन।

आग तेरी है न मेरी, आग को मत दे हवा
राख मेरा घर हुआ तो तेरा घर देखेगा कौन।

अपने बुत अपनी ही झोली में छुपाकर लौट जा
लोग अन्धे हैं यहाँ तेरा हुनर देखेगा कौन।

अपनी-अपनी नह्र के अतराफ़ बैठे हैं सभी
प्यास की सूली पे हम प्यासों के सर देखेगा कौन।

घर में पहुँचूँगा तो सब गठरी टटोलेंगे मेरी
आँख में चुभती हुई गर्दे-सफ़र देखेगा कौन।