भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊँचे-बड़े नीलामघरों में / गुन्नार एकिलोफ़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:17, 24 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुन्नार एकिलोफ़ |संग्रह=मुश्किल से खुली एक खिड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊँचे बड़े नीलामघरों में
इस्फ़हान के बाज़ार में
एक हज़ार और एक शरीर
एक हज़ार और एक आत्माएँ
रखी गईं नीलामी के लिए दासों की मानिन्द

आत्माएँ थीं मानो स्त्रियाँ
शरीर मानो पुरुष
और व्यापारी थे ख़ुशनसीब
विदग्धता के चलते ख़ूब मालामाल
जिसने तलाश ही ली शुरूआत के लिए
एक अदद आत्मा और एक अदद देह
जो खाते थे मेल और कर सकते थे
मैथुन ।