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ऊँचे दरख्तों के साए में प्यार / संजय अलंग

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प्यार स्वयं कदम्ब के पेड़ों की गणना पर है
वह बच्चा ऊँचे पेड़ों की छाँह में ड़ूब गया है
प्यार तो शास्वत है और सर्वाधिक समसामायिक भी
जंगल में अब भी गुनगुनी धूप विस्तार पा रही है
हालाँकि पेड़ और ऊँचे होते जा रहे हैं
कश्मीर से बस्तर तक यही बयार है
सुबह की धूप के टुकड़े की कमीज बना पहनना चाह रहा है
पर धूप कहाँ है?
 
सभी पक्षी बन्द कर देते चहकना
गाती जब मैना
सुनने को मीठा गाना
अभी भी निरवता ही है
अब भूल ही गया है चहकना
उस बन्द करने और इस भूलने में अंतर
कोई महसूस ही नहीं कर पा रहा है
जबकि बताते हैं,
उनके पास महसूसने को अंग रहे हैं
बच्चा ऊँचे दरख्तों के मध्य उन्हें भी खोज रहा है

प्यार को प्यार और बढ़ाता रहा होगा
साथ रहने से और भी परवान चढ़ता था
क्या कैम्प और शिविर में साथ रहने से भी?
अब उत्तर क्या होगा
दरख्त उसे भी अपने में समेटे रहेंगें

मीठी सुबह की गुनगुनी धूप के वस्त्र
काँटों से उलझते, बदन छिलते
तो मुस्कुराहट ही आती
अब यही वस्त्र
पेशाब में भींग कर बदबू मार रहे हैं
बर्बादी घोटुल से शिकारों तक
शरीर ढ़कने को तरस रही है
अल्हड़ गोंड़-गोंड़िन के जंगल में भाग जाने पर
खोजने वाला ही नहीं रहा
माड़ (पहाड़) को पूजने वाला
और अबूझ ही बना रहे

राजा रानी न तो जुताई करते हैं
न ही रथ पर बैठते है
चाह अवश्य
समुन्दर से मत्सयगन्धा की है
राजा-रानी यह जरूर कह रहे हैं कि
प्यार क्या शापित हो चला है?
जो भेजा जा रहा है घोटुल में आनन्द मारने
शिकारों को ड़ुबोने

आधी रात का निधन
नागफनी से ही जन्म लेता है
चिनार, गुलाब, महुआ, सल्फी
रौंद दिए गए हैं
पिघलती संगीनें और बूट भी प्यार ही माँग रहे है
संगीनों और बूटों को दफनाया साथ ही जाना है
माँ ने मारने की आज्ञा दी है

बस प्यार दरख्तों के मध्य कोई खोज नहीं पा रहा है
बच्चा अभी भी प्रयासरत है
रानी संगीन के नोक पर खड़ी
नृत्य को साध रही है
राजा छीजन और चीथड़ों के मध्य भी रसीली बोटी पा गया है
प्यार माँ के साथ ही झूम रहा है
बच्चा उससे चिपका हुआ है
बाकी तो गोली खा रहे हैं