भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊंच चउरवा चौखुट बाबा / बघेली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊंच चउरवा चौखुट बाबा
ईंगुर ढारे बान हो मां
ओही चढ़ि बैठे राजा हो ए दशरथ
बैठि संवारे बान हो मां
बान संवारत रहि गये राजा
गड़ी अंगुरियन फांस हो मां
फांस रहइ तौ सरि गलि गै
पीर रही दस मास हो मां
केकई अउर कौशिला रानी
इं दुनौ पहरे जाय हो मां
केकरे पहरे सुख सोवइं राजा
केकरे पहर उसनींद हो मां
केकई के पहरे सुख सोवइं राजा
कौशिला पहर उसनींद हो मां
मांगु मांगु वर केकईं रानी
जौन तोरे मन होय हो मां
जउन वर हम मांगव राजा
दइ तुमसे ना जाइ हो मां
की तो लेबइ समुद्र का फेनुका
की ऊमर का फूल हो मां
बजउन मंगन तुम माग्या रानी
तउन नहीं संसार हो मां
फेरि मंगन तुम मांगा रानी
जउन तुम्हारे मन होय हो मां
जउन मंगन हम मांगव राजा
दइ तुमसे ना जाइ हो मां
चतुर भरत का राज लिखावा
राम लिखा बनवास हो मां