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ऊधो कहौ सूधौ सौ सनेस पहिले तौ यह / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

ऊधो कहौ सूधौ सौ सनेस पहिले तौ यह,
प्यारे परदेश तैं कबै धौ पग पारिहैं ।
कहै रतनाकर तिहारी परि बातनि मैं,
मीड़ि हम कबलौं करेजौ मन मारिहैं ॥
लाइ-लाइ पाती छाती कब लौं सिरेहैं हाय,
धरि-धरि ध्यान धीर कब लगि धारिहैं ।
बैननि उचारिहैं उराहनौं सबै धों कबै,
श्याम कौ सलौनो रूप नैननि निहारिहैं ॥35॥