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ऊधो तुम सूधो हाये चले जाहू गोकुल से / महेन्द्र मिश्र

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ऊधो तुम सूधो हाये चले जाहू गोकुल से
उठत है कलेजा पीर बाते करत स्याम की।
कूबड़ी को पटक मारूँ कूबड़ को निकास डालूँ
तबहीं त सत्य-सत्य बेटी वृषभान के।
कूबड़ी सभ भोग जोग साधत है गोपी सभै
बोलत हो बाते सभ याही के प्रमाण की।
द्विज महेन्द्र ऊधो वाह कैसी है समझ तेरी
उम्र तो बुढ़ारी पर ढुँढ़ारी करे श्याम की।