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ऊधो रंच न मन आनन्दा / आनन्दी सहाय शुक्ल

ऊधो रंच न मन आनन्दा ।।
धिक ऐसी साँसों का जीवन जिसमें ताल न छन्दा ।।

थाका कसबल दृष्टि श्रवण
सब क्रमशः पड़ते मन्दा
कितनी निलज चाह जीने की
मरण न माँगे बन्दा

अर्थ रज्जु गर्दन को जकड़े
गाँठ लगाए फन्दा
सबसे वृहत सवाल भूख का
दिन में दिखते चन्दा

नस्ल कमल की गुम होती है
सर में कीचड़ गन्दा
व्यर्थ हुए गुरुदेव निराला सार्थक गुलशन नन्दा ।।