भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊधो संझा उतरी अंगना / आनन्दी सहाय शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:14, 4 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनन्दी सहाय शुक्ल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ऊधो संझा उतरी अंगना ।।
तुलसी चौरा धूमिल घरतिन पहिने टूटा कंगना ।।
सारी उमर जठर ने फूँका
हर सतरंगी सपना
रोटी दाल इष्ट साँसों के
पेट देवता अपना
ऐसी मिली कामरी कारी चढ़ा दूसरा रंगना ।।
कशा लात थप्पड़ जूतों से
जी भर हुई कुटाई
तन आत्मा में नील हैं गहरे
ज़ख़्मों की परछाई
अगले जनम हाड़ के बदले अब पहाड़ है मँगना ।।