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ऊपर बादर घर्राएँ हों (कुआँ-पूजन) / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊपर बादर घर्राएँ हों,
नीचे गोरी धन पनिया खों निकरी ।
जाय जो क‍इऔ उन राजा ससुर सों,
अँगना में कुइआ खुदाय हो
तुमारी बहू पनिया खों निकरी ।
जाय जो क‍इऔ उन राजा जेठा सों,
अँगना में पाटें जराय हो,
तुमारी बहू पनिया खों निकरी ।
जाय ओ कइऔ उन वारे देउर सों,
रेशम लेजे भूराय हों
तुमारी बहू पनिया खों निकरी ।
अरे ओ जाय ओ कइऔ उन राजा ननदो‍उ सों,
मुतिखन कुड़ारी गढ़ाए हों,
तुमारी सारज पनिया खों निकरी ।
जाय जो क‍इऔ उन राजा पिया सों,
सोने का घड़ा बनवाए हों,
तुमारी धनि पनिया खों निकरी ।

भावार्थ

आसमान में बादल गरज रहे हैं
गोरी पानी भरने के लिए कुएँ पर जा रही है।
वह अपने ससुर से विनति करती है
क्यों न घर के आँगन में ही कुआँ खुदवा दिया जाए
जिससे कि वह आराम से पानी भर सके ।
अपने जेठ से वह कहती है कि
वे आँगन में पाट लगवा दें,
देवर से कहती है कि
वे रेशम की डोरी ला दें,
नन्दोई से कहती है कि
मोती की कुड़री गढ़वा दें,
पति से कहती है--
मेरे लिए सोने का कलश बनवा दो
तुम्हारी पत्नी पानी भरने जा रही है ।