भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊपर बादल घुमड़ाये हो / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊपर बादल घुमड़ाये हो,
नीचे गोरी पनियां खों निकरी। ऊपर...
जाय जो कइयो उन राजा ससुर से,
अंगना में कुइयां खुदाव हो,
तुम्हारी बहू पनियां खों निकरी। ऊपर बादल...
जाय जो कइयो उन राजा जेठ से,
सोने के घइला मंगाव हो,
तुम्हारी बहू पनियां खों निकरी। ऊपर बादल...
जाय जो कइयो उन राजा नन्देऊ से,
मुतियन कुड़री जड़ाव हो,
तुम्हारी सरहज पनियां खों निकरी। ऊपर बादल...
जाय जो कइयो उन राजा देवर से,
रेशम की रस्सी मंगाव हो,
तुम्हारी भौजी पनियां खों निकरी। ऊपर बादल...
जाय जो कइयो उन राजा साहब से,
कुंअला पे गर्रा डराव हो,
तुम्हारी धना पनियां खों निकरी,
ऊपर बादल घुमड़ाये हो,
नीचे गोरी पनियां खों निकरी।