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"ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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ऊषा के सँग, पहिन अस्र्णिमा
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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा
 
मेरी सुरत बावली बोली-
 
मेरी सुरत बावली बोली-
 
 
उतर न सके प्राण सपनों से,
 
उतर न सके प्राण सपनों से,
 
 
मुझे एक सपने में ले ले।
 
मुझे एक सपने में ले ले।
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
तेर एक-एक सपने पर  
 
तेर एक-एक सपने पर  
 
 
सौ-सौ जग न्यौछावर राजा।
 
सौ-सौ जग न्यौछावर राजा।
 
 
छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा
 
छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा
 
 
चल उठ, अब सपनों में खेलें?
 
चल उठ, अब सपनों में खेलें?
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
देख, देख, उस ओर `मित्र' की
 
देख, देख, उस ओर `मित्र' की
 
 
इस बाजू पंकज की दूरी,
 
इस बाजू पंकज की दूरी,
 
 
और देख उसकी किरनों में
 
और देख उसकी किरनों में
 
 
यह हँस-हँस जय माला मेले।
 
यह हँस-हँस जय माला मेले।
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
पंकज का हँसना,
 
पंकज का हँसना,
 
 
मेरा रो देना,
 
मेरा रो देना,
 
 
क्या अपराध हुआ यह?
 
क्या अपराध हुआ यह?
 
 
कि मैं जन्म तुझमें ले आया
 
कि मैं जन्म तुझमें ले आया
 
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उपजा नहीं कीच के ढेले।
उपजा नहीं कीच के ढेल।
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मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
तो भी मैं ऊषा के स्वर में
 
तो भी मैं ऊषा के स्वर में
 
 
फूल-फूल मुख-पंकज धोकर
 
फूल-फूल मुख-पंकज धोकर
 
 
जी, हँस उठी आँसुओं में से
 
जी, हँस उठी आँसुओं में से
 
 
छुपी वेदना में रस घोले।
 
छुपी वेदना में रस घोले।
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
कितनी दूर?
 
कितनी दूर?
 
 
कि इतनी दूरी!
 
कि इतनी दूरी!
 
 
ऊगे भले प्रभाकर मेरे,
 
ऊगे भले प्रभाकर मेरे,
 
 
क्यों ऊगे? जी पहुँच न पाता
 
क्यों ऊगे? जी पहुँच न पाता
 
 
यह अभाग अब किससे खेले?
 
यह अभाग अब किससे खेले?
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
प्रात: आँसू ढुलकाकर भी
 
प्रात: आँसू ढुलकाकर भी
 
 
खिली पखुड़ियाँ, पंकज किलके,
 
खिली पखुड़ियाँ, पंकज किलके,
 
 
मैं भाँवरिया खेल न जानी
 
मैं भाँवरिया खेल न जानी
 
 
अपने साजन से हिल-मिल के।
 
अपने साजन से हिल-मिल के।
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
 
  
 
दर्पण देखा, यह क्या दीखा?
 
दर्पण देखा, यह क्या दीखा?
 
 
मेरा चित्र, कि तेरी छाया?
 
मेरा चित्र, कि तेरी छाया?
 
 
मुसकाहट पर चढ़कर बैरी
 
मुसकाहट पर चढ़कर बैरी
 
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रहा बिखेरे चमक के ढेले,
रहा बिखेरे चमक के ढेल,
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मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
  
 
यह प्रहार? चोखा गठ-बंधन!
 
यह प्रहार? चोखा गठ-बंधन!
 
 
चुंबन में यह मीठा दंशन।
 
चुंबन में यह मीठा दंशन।
 
 
`पिये इरादे, खाये संकट'
 
`पिये इरादे, खाये संकट'
 
 
इतना क्या कम है अपनापन?
 
इतना क्या कम है अपनापन?
 
 
बहुत हुआ, ये चिड़ियाँ चहकीं,
 
बहुत हुआ, ये चिड़ियाँ चहकीं,
 
 
ले सपने फूलों में ले ले।
 
ले सपने फूलों में ले ले।
 
 
मेरा कौन कसाला झेले?
 
मेरा कौन कसाला झेले?
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20:48, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा
मेरी सुरत बावली बोली-
उतर न सके प्राण सपनों से,
मुझे एक सपने में ले ले।
मेरा कौन कसाला झेले?

तेर एक-एक सपने पर
सौ-सौ जग न्यौछावर राजा।
छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा
चल उठ, अब सपनों में खेलें?
मेरा कौन कसाला झेले?

देख, देख, उस ओर `मित्र' की
इस बाजू पंकज की दूरी,
और देख उसकी किरनों में
यह हँस-हँस जय माला मेले।
मेरा कौन कसाला झेले?

पंकज का हँसना,
मेरा रो देना,
क्या अपराध हुआ यह?
कि मैं जन्म तुझमें ले आया
उपजा नहीं कीच के ढेले।
मेरा कौन कसाला झेले?

तो भी मैं ऊषा के स्वर में
फूल-फूल मुख-पंकज धोकर
जी, हँस उठी आँसुओं में से
छुपी वेदना में रस घोले।
मेरा कौन कसाला झेले?

कितनी दूर?
कि इतनी दूरी!
ऊगे भले प्रभाकर मेरे,
क्यों ऊगे? जी पहुँच न पाता
यह अभाग अब किससे खेले?
मेरा कौन कसाला झेले?

प्रात: आँसू ढुलकाकर भी
खिली पखुड़ियाँ, पंकज किलके,
मैं भाँवरिया खेल न जानी
अपने साजन से हिल-मिल के।
मेरा कौन कसाला झेले?

दर्पण देखा, यह क्या दीखा?
मेरा चित्र, कि तेरी छाया?
मुसकाहट पर चढ़कर बैरी
रहा बिखेरे चमक के ढेले,
मेरा कौन कसाला झेले?

यह प्रहार? चोखा गठ-बंधन!
चुंबन में यह मीठा दंशन।
`पिये इरादे, खाये संकट'
इतना क्या कम है अपनापन?
बहुत हुआ, ये चिड़ियाँ चहकीं,
ले सपने फूलों में ले ले।
मेरा कौन कसाला झेले?