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एकलड़ी / सत्यनारायण सोनी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=}}[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव।जीव ।घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव!
जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन।चैन ।'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन।।नैन ।।
चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म।हम्म ।चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म।।गम्म ।।
सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ।चौथ ।एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ।।चौथ ।।
दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर।नूर ।रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर।।दूर ।।
दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न।मन्न ।पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न।।तन्न ।।
रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग।लोग ।थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग।।संजोग ।।
म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल।मिसकाल ।चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल!
जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ।नाथ ।सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात।।रात ।।
म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल।फूल ।एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ।।सूळ ।।
दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट।ऊचाट ।एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट।।खाट ।।
पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान।कान ।माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान।।मान ।।
माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान।मान ।एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान।।तान ।।
थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप।थाप ।तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप।। आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ।प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ।।छाप ।।
आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ ।
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ ।।
</poem>
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