http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6-3_/_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%9C_%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A8&feed=atom&action=historyएकलव्य से संवाद-3 / अनुज लुगुन - अवतरण इतिहास2024-03-29T14:07:48Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6-3_/_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%9C_%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A8&diff=106420&oldid=prevअनिल जनविजय: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> घुप्प अमावस के स…2011-02-10T05:20:56Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> घुप्प अमावस के स…</p>
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|संग्रह= <br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
घुप्प अमावस के सागर में<br />
ओस से घुलते मचान के नीचे<br />
रक्सा, डायन और चुड़ैलों के क़िस्सों के साथ<br />
खेत की रखवाली करते काण्डे हड़म<br />
तुमने जंगल की नीखता को झंकरित करते नुगुरों के <br />
संगीत की अचानक उलाहना को<br />
पहचान लिया था और<br />
चर्र-चर्र-चर्र की समूह ध्वनि की<br />
दिशा में कान लगाकर<br />
अंधेरे को चीरता<br />
अनुमान का सटीक तीर छोड़ा था<br />
<br />
और सागर में अति लघु भूखण्ड की तरह<br />
सनई की रोशनी में<br />
तुमने ढूँढ़ निकाला था<br />
अपने ही तीर को<br />
जो बरहे की छाती में जा धँसा था ।<br />
<br />
तब भी तुम्हारे हाथों छुटा तीर<br />
ऐसे ही तना था ।<br />
<br />
ऐसा ही हुनर था<br />
जब डुम्बारी बुरू से<ref>बिरसा मुण्डा का युद्धस्थल</ref><br />
सैकड़ों तीरों ने आग उगली थी<br />
और हाड़-माँस का छरहरा बदन बिरसा<br />
अपने अद्भुत हुनर से<br />
भगवान कहलाया ।<br />
<br />
ऐसा ही हुनर था<br />
जब मुण्डाओं ने<br />
बुरू इरगी के पहाड़ पर<ref>बुरू इरगी, सिमडेगा ज़िले में जहाँ मुण्डा स्वशासन के नाम पर आज भी जतरा मनाते हैं</ref><br />
अपने स्वशासन का झंडा लहराया था ।<br />
</poem><br />
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