भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एकलौता शहीद / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जखनी-जखनी याद पड़ै छै, मैया-बप्पा कानै छै
सुतै मं दिक्कत के बहाना, पक्का बाला फानै छै।

एक्के गो तेॅ बेटा छीलै, भरती होलै फौज मं,
माय सोचलकै बीहा करबै, जिनगी कटतै मौज मं।

कारगिल मं पाकिस्तानी फेंकं लागलै गोली बम,
भरत के बेटा करी देलकै दुश्मन के नाकऽ मं दम।

घर मेॅ जरलै दीया-बाती, गोली लगलै सीधे छाती,
जय-जयकार करी भारत के सीना आपनऽ तानै छै।
जखनी-जखनी यादऽ पड़ै छै, मैया-बप्पा कानै छै।

शहीद केरऽ यादऽ मेॅ अतमा, बड़ा जोर सेॅ दुक्खै छै,
सोचतें-सोचतें माय-बाप के, भूखलऽ लहू खुक्खै छै।

के देतै मरला पेॅ पानी, मैयो बाबू के कहतै,
बूढऽ मेॅ हांथऽ केॅ लाठी, दीयै खतिर के रहतै।

कत्तऽ समझाबै छै सब्भै, तैयो नै उ मानै छै।
जखनी-जखनी याद पडै छै, मैया-बप्पा कानै छै।