भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एके तेल चढ़ेंगे-2 / छत्तीसगढ़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एक तेल चढ़गे
एक तेल चढ़गे, हो हरियर हरियर
हो हरियर हरियर
मंड़वा मे दुलरू तोर बदन कुम्हलाय
रामे-वो-लखन के
रामे-वो-लखन के दाई तेल वो चढ़त हे
दाई तेल वो चढ़त हे
कहवा के दियना दीदी करथे अंजोर

आमा अमली के
आमा अमली के दाई सीतल छईहां
दाई सीतल छईहाँ
कर देबे फूफू तोर अँचरा के छाँव
दाई के अँचरा
दाई के अँचरा वो अगिन बरत हे
हो अगिन बरत हे
फूफू के अंचरा मोर इन्दरी जुड़ाय

काकी के अँचरा
काकी के अँचरा दाई अगिन बरत हे
दाई अगिन बरत हे
मामी के अंचरा मोर इन्दरी जुड़ाय
डोंगरी पहारे
डोंगरी पहारे दीदी घनरा चलत हे
दीदी घनरा चलत हे
पेरि देबे तेलिया मोर राई सरसो के तेल

रामे-वो-लखन के
रामे-वो-लखन के दाई तेल वो चढ़त हे
दाई तेल वो चढ़त हे
पेरि देबे तेलिया मोर राई सरसो के तेल
हमरे दुलरवा
हमरे दुलरवा नई बांधे मऊरे
नई बांधे मऊरे
नई सहे तेलिया मोर राई सरसो के तेल