Last modified on 27 फ़रवरी 2018, at 22:01

एक-एक दाना उजाला / प्रज्ञा रावत

जब से चिड़िया रह गई है
एकदम अकेली
उड़ती ही रहती है
नीले आकाश में
कभी बादलों में
तो कभी
कड़कती बिजली से बचती
तेज़ मूसलाधार बारिश में
भीगती
फिर भी मुस्तैद
पँख नहीं रुकते उसके

जाने कौन-कौन सी दिशा से
इकट्ठा करती रहती है
एक-एक दाना
उजाला, ख़ुशबू, चमक

वो वर्ड्सवर्थ की स्काइलार्क है
जिसकी आँखों में बसा है
उसका घोंसला
हर बार डालते हुए दाना
चोंच से
अपने बच्चों को सुरक्षित देख
चैन की साँस भरती है
चिड़िया बहुत डरती है
बहेलियों से, आँधी से।