भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक-एक पत्ती की भूमिका है / गणेश पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी पत्ती को
उदास करने लिए
थोड़ी- सी तेज़ धूप
और एक छोटा-सा
चुभता हुआ काँटा
बहुत है

एक उदास
पत्ती के लिए
हवा का जरा-सा धक्का
किसी से मिली
कोई हल्की-सी चोट
काफ़ी है
टूट जाने के लिए

दुख की धरती पर
दुख के वन में
दुख के लम्बे-लम्बे वृक्ष ज़्यादा हैं
और घने वृक्षों की गोद में
उदास पत्तियाँ सबसे ज़्यादा
फूल थोड़े हैं
जिन्हें ढँग से चाहने वाले
और भी कम
सुगन्ध थोड़ी-सी है
और धरती असीम

जितनी भी बड़ी हो पृथ्वी
उदास पत्तियों की पंक्ति
उससे बड़ी है
एक पत्ती को टूटकर गिरने
और गिरते-गिरते किसी के वास्ते
मर-मिटने के लिए
चाहिए
बस, उतनी-सी मिट्टी
चाहिए जितनी जगह
किसी लम्बी उड़ान पर निकले
एक थके हुए पक्षी को
बस, ज़रा-सा
अपने पैर रखने के लिए

इस जीवन में
एक पत्तियों को
और क्या चाहिए
फूलों और फलों के लिए
मर-मिटने के सिवा

पत्तियों की इस दुनिया में
एक-एक पत्ती की भूमिका है
दुख है तो है
दुख के इस महारंग में
थोड़ा प्रेम का रंग है
थोड़ा साहचर्य का रंग
थोड़ा जीवन का

इसी में कोई-कोई पत्तियाँ
चाय की पत्तियों की तरह
अपना लहू निचोड़ कर
टूटे हुए दिल जोड़ती हैं
और अपना दुख छिपाकर
दुनिया के दुख से करती हैं
हंस-हंसकर बातें ।