भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अँजुरी जल / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्रोत यही है
यही हो तुम

यद्यपि खड़ी रहती हो
बैठ जाती हो
घर से चली जाती हो बरामदे में
फिर भी स्रोत तो यही है

कितने शान्त प्रवाह में
बहता आ रहा सारा क्षण

मैं तो दोनों हाथों से
भर लेता हूँ एक अँजुरी जल

उसी जल में छाया फेंकती हो तुम
अरे ओ ! जयश्री जीवन !

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी