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एक अनकही बात / भावना कुँअर

आज एक वर्ष पूरा हो गया
मगर मेरा ख़्वाब
अभी अधूरा है,
अभी तो मुझे पाना है
सूरज-सा तेज
और चाँद-सी शीतलता,
अभी तो मुझे पानी है
फूलों-सी कोमलता
धरती-सी सहनशीलता,
अभी तो मुझे चुराने हैं
कुछ रंग इन
रंगबिरंगी तितलियों से,
अभी तो मुझे लेना है
थोड़ा-सा विस्तार
इस नीले गगन से,
अभी तो मुझे लानी है
थोड़ी-सी लाली इस
ढलती हुई शाम से,
अभी तो मुझे
चुरानी है
थोड़ी-सी चमक
इन चमचमाते तारों से,
अभी तो मुझे लेनी है
थोड़ी-सी हरियाली
इन लहलहाते खलियानों से,
अभी तो मुझे पानी है
नदी-सी चंचलता और
पहाड़-सी स्थिरता
हाँ, तभी तो होगा
ये ब्लॉग पूरा
इन रंगों से
सजा, हरा-भरा
मेरे ख़्वाबों की ज़मीं पर
सजा-धजा ।