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एक और अंत / सजीव सारथी

(१)

पूरब और पश्चिम - दो जुड़वाँ भाई,
सूरज की गेंद को एक दूसरे के पाले में,
फेंकने का खेल खेलते थे।

पूरब- कुछ थका सा, बड़े भाई जैसा,
आत्मा के गहरे अर्थों में उतरता था,
जीवन का सत्य समझता था,
आत्मिक आँखों से संसार को परखता था,
परम अनंद के सूत्र उसने ढूंढ निकाले,
वह जीने के संस्कार बाँटता था,
उसके पास ज्ञान का ताना था।

पश्चिम - कुछ बिगडा सा, छोटे भाई जैसा,
तर्कों में उलझा रहता था,
हर सिद्धांत को कसौटी पर रखता था,
उसने समझाया दुनिया कैसे बनी, क्यों बनी,
उसने जीवन को रफ़्तार दी,
भौतिकता की सारी परतें,
उसने उधेड़ कर सामने रख दी,
उसके पास विज्ञान का बाना था।

पूरब और पश्चिम- दो जुड़वाँ भाई,
एक दूजे से कितने अलग –
फ़िर भी एक दूजे के पूरक,
सूरज की गेंद को
एक दूसरे के पाले में फेंकते रहे, खेलते रहे।

सदियाँ गुजरी, केन्द्र बदलता गया,
पूरब - अपनी ही वर्जनाओं में जकड गया,
अपने ही संस्कारों से उब गया,
उसने आत्मा से मुँह मोड़ लिया,
वह जीवन के सत्यों को भूल गया,
उसने ख़ुद को पिछडा हुआ पाया,
सत्य को जमीं से उखडा हुआ पाया,

वह अपनी ही कुंठा में जलने लगा,
अपने ही दमन में सुलगने लगा,

पश्चिम - अपनी संभावनाओं पर अकड़ गया,
अपनी कामियाबी पर फूल गया,
उसने मौत को चुनौती दे डाली,
वह वासनाओं में उलझ गया,
वह मुगालते में था कि दुनिया जीत ली,
पर ख़ुद को जीतना भूल गया,
वह अपने ही चक्रव्यूह में फंसने लगा,
पागलों की तरह कुदरत को ललकारने लगा।

पूरब ने भ्रमित होकर,
अपने ज्ञान को फूंक दिया,
और उसकी राख सूरज के मुँह पर मल दी,
आधा संसार धुंधला हो गया,
पश्चिम यह देख कर ठा-ठा कर हंसा,
अपने गरुर में चूर होकर उसने,
अपने विज्ञान का परमाणु,
सूरज के सर पर फोड़ दिया,
एक भयानक रोशनी हुई,
और अगले ही पल,
सारा संसार अंधा हो गया,
कल शाम, साहिल पर खड़े होकर,
मैंने देखा था - खून से लथपथ,
डरा सहमा सूरज,
दरिया में उतर गया था,
देर तक लहू बरसता रहा था
आसमान से ।

(२)

मेरी आंख खुलती है,
मैं खिडकी से बाहर झांकता हूँ,
दूब के हरे कालीनों पर,

सतरंगी किरणों का जादू बरकरार है,
मुझे अपने देखे सपने पर ताज्जुब होता है,
क्योंकि मैं जानता हूँ कि
सूरज कभी उगता या डूबता नही,
पूरब और पश्चिम दिशाओं के बीच,
कहीँ स्थिर खड़ा रहता है बस,
तभी मुझे याद आता है,
मैंने कही पढा है
कहीँ कोई ग्रह है, जिसका रंग सुर्ख है,
जहाँ दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध है और
वहाँ का आकाश काले धुवें से भरा पड़ा है,
हाँ ......मैंने कहीँ पढ़ा है....