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एक क़तरा भी जहाँ बेमौत मारा जाएगा / विनय कुमार

एक क़तरा भी जहाँ बेमौत मारा जाएगा।
जायज़ा लेने वहाँ दरिया दुबारा जाएगा।

आदमी के फ़ल्सफ़े दरिया समझ सकता नहीं
आपका हर लफ़्ज़ पानी से सुधारा जाएगा।

तोड़ता हूँ रोज़ गांधी को ज़रा सा खीझकर
कह गए थे, नाम मेरा भी पुकारा जाएगा।

सब ज़मीनें तो नहीं हमने बुहारीं आज तक
अहद है, अब आसमानों को बुहारा जाएगा।

छटपटाएंगे तुम्हारे हाथ सोने के लिए
ज़हन में पिघला हुआ सोना उतारा जाएगा।

तख़्त के नीचे पड़े उस एक बटुए के लिए
सोच भी सकते नहीं थे, ताज हारा जाएगा।

सब दिए देने लगे शातिर अंधेरों को पनाह
अब इन्हीं की रोशनी में चांद मारा जाएगा।