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एक क़ैदी की छटपटाहट ! / मूसा जलील / भारत यायावर

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पौ फटने के साथ ही उठता हूँ
या डूबता हूँ अन्धेरे नरक की नींद में
अनुभव होता है
कुछ कमी है
कि कुछ बहुत ज्यादा ग़लत है
हाथ और पैर सहलाता हूं
कमजोर तो नहीं जान पड़ते !
आत्मा और देह की ख़ामोश आवाज़ महसूस करता हूँ ।

स्वाधीनता !
तुम्हें मैंने खोया है
यही मेरा सँकट है
एक क़ैदी को
दान में दी गई वायु में
मैं सांस लेना नहीं चाहता

जब क़ैदख़ाने में
आपकी आवाज़ का दम घोंट दिया जाए
आपके जीवित शरीर को
जीवन से वंचित कर दिया जाए
तब यह कोई मायने नहीं रखता
कि आप जीवित हैं या मरे हुए

फिर भी मेरे हाथ-पैर सही-सलामत हैं
पर क्या फ़ायदा ?
अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वे हैं

मुक्त विचरने का मेरा अधिकार
हर लिया गया है
मेरी हर गतिविधि पर पहरा है
मैं कोई गीत भी नहीं गा सकता !

अपने माता-पिता के बिना तड़प रहा हूँ
कभी वंचित महसूस नहीं किया इस तरह
और इस तरह अकेला !

अब मैंने खोया है
जिसे अब तक थामे था —
अपनी सबसे प्यारी
मातृभूमि को
जो मेरी अपनी थी !

दुश्मन देश में पकड़ा गया एक क़ैदी
एक अनाथ
घर और मातृभूमि के बग़ैर
अपने शत्रुओं के लिए विनाशकारी ।

इसलिए मेरे जीवन को
पत्थरों की दीवारों के बीच क़ैद किया गया है
मेरा जीवन
ठीक एक सुनहरे पक्षी की उड़ान भर चुका है

मेरी पंख वाली मुक्ति !
मेरी आज़ादी !
यदि तुम मेरे साथ होतीं
तो मैं सबकुछ तहस-नहस कर देता !

कोई न खुला रास्ता गहराई पाने का
खोई हुई स्वाधीनता
पीड़ित हृदय को मरोड़ती है

जब स्वतन्त्र था
स्वाधीनता का मूल्य कहाँ जानता था !
क़ैदी होकर ही सीख रहा हूँ
स्वाधीनता की क़ीमत क्या है?

एक वक्त आएगा और यह बन्दी जीवन मिट जाएगा
जब मेरे देश के सैनिक यहाँ आएँगे
मुझे जीवित पाएँगे

मुक्ति के लिए
पवित्र सँघर्ष
अपने बचे हुए प्राणों से
मैं करता रहूँगा हर पल !

(रूसी तातार कवि मूसा जलील ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी सेना की क़ैद में यह कविता लिखी।)

अँग्रेज़ी से भावान्तर : भारत यायावर