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"एक ग़ज़ल है बनने को / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

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वो बैठे हैं सजने को
 
वो बैठे हैं सजने को
  
आँखों ने सब कह डाला  
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आँखों से कह डाला सब
और बचा क्या कहने को
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और रहा क्या कहने को
  
शौक़ नहीं गर मंज़िल का
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बात नहीं वो मंज़िल में
चल रस्ते पर थकने को
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चल, रस्ते पर थकने को
  
नाख़ून उसके बढ़ आये
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नाखुन उसके बढ़ आये
ज़ख्म चले जब भरने को
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जख्म चले जब भरने को
  
 
महके सारा घर, जब माँ
 
महके सारा घर, जब माँ
 
बैठे माला जपने को
 
बैठे माला जपने को
  
शाम ढले जब हँस दे तू
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शाम ढ़ले जब हँस दे तू
 
मचले सूरज उगने को
 
मचले सूरज उगने को
  
पूरा चाँद जो मुस्काए
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मुस्काये जब पूरा चाँद
 
सागर तड़पे उठने को
 
सागर तड़पे उठने को
  
''{द्विमासिक सुख़नवर, जनवरी-फरवरी,2010}''
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(द्विमासिक सुख़नवर, जनवरी-फरवरी,2010)

20:36, 6 मार्च 2016 के समय का अवतरण

एक ग़ज़ल है बनने को
वो बैठे हैं सजने को

आँखों से कह डाला सब
और रहा क्या कहने को

बात नहीं वो मंज़िल में
चल, रस्ते पर थकने को

नाखुन उसके बढ़ आये
जख्म चले जब भरने को

महके सारा घर, जब माँ
बैठे माला जपने को

शाम ढ़ले जब हँस दे तू
मचले सूरज उगने को

मुस्काये जब पूरा चाँद
सागर तड़पे उठने को



(द्विमासिक सुख़नवर, जनवरी-फरवरी,2010)