भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक चिड़िया की आत्मा / रमेश पाण्डेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 6 अक्टूबर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स


8


एक चिड़िया की आत्मा

अक्सर मेरे ऊपर सवार हो जाती है


वह मुझे उड़ा ले जाती है

पसीजे बादलों के बीच


हवा में तैरते हुए दिखाती है मुझे

नीचे बहती नदी

जिसमें कोई चिड़िया चोंच में पानी भर रही होती है


एक टुकड़ा जंगल

जिसमें कोई चिड़िया गा रही होती है

बारिश का लोकगीत


एक बिस्वा ज़मीन

जिसमें हल-बैल से

खेत जोत रहा होता है अधेड़ किसान


दिखाती है एक घर

और मुझे उस घर की मुंडेर पर बिठाकर

छोड़ जाती है


मैं मुंडेर पर चिड़िया की तरह बैठा रहता हूँ

चिड़िया की जगह


(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है