भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक छोटी बात कोई आ के समझाना मुझे / प्रेमचंद सहजवाला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक छोटी बात कोई आ के समझाना मुझे
मुल्क और दर्दे-चमन में फर्क बतलाना मुझे

दर्द मेरा जानने मोटर में आए मेहरबाँ
आज उन के घर तलक पैदल पड़ा आना मुझे

जब कड़ी सी धूप के दिन अलविदा देने लगे
दोस्तो अच्छा लगा बादल का तब छाना मुझे

कह रहा था कल नुमाइंदा ये मेरे शहर का
खूब आता है सितारे तोड़ कर लाना मुझे

आस्मां को छू रहे हैं दाम हर इक शै के अब
कोई ला कर दे कहीं से सिर्फ़ इक दाना मुझे

हर लम्हा नगमे खिजां के गा रहा हूँ आजकल
फस्ले-गुल का भी सिखा दो गीत तुम गाना मुझे

मुल्क की हालत पे लिख डाली उन्होंने इक किताब
उस के पन्नों पर कहीं सच हो तो पढ़वाना मुझे

क्यों करोड़ों लोग आए हैं वहाँ मैदान में
मेरी हस्ती चाहता है कौन बतलाना मुझे

सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे