भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक दिन बीति गेल, ओहिना अनेरें / धीरेन्द्र
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 23 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र |संग्रह=करूणा भरल ई गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक दिन बीति गेल, ओहिना अनेरें
एहिनाकए रीति गेल कते-कते हमर दिन।
एहिनाकए बीति गेल कते-कते हमर वर्ष।
वयकेर पनिभरनीकेर फूटि गेल ढेर घट।
अरसि-परसि थाकि गेल आइ हमर अरे बाँहि।
मरूयलमे मुदा आइ लागि रहल वाटिका।
सोच करत मालि किए जँ ओकरा भगाओल गेल।
रोपबाकेर अन्त भेल आइ यदि नाटिका।
रिक्त रिक्त आइ हम, भरल-पुरल गाछ अछि,
पसरल संसार अछि चलबाले पयार हमर,
करबा ले हाथ हमर, लागल अछि सिरजनकेर
रोग यदि हमरा, कहू मीत भेल आइ कोनो बेरे।
ओना साँचा बीति गेल एक दिन अनेरे !!