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एक ध्वनि गूँजे / कविता भट्ट

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मैं काश! तुम्हारी गोदी में
सिर रख सिसक-रो पाती।
थक जाती रोते-रोते जब
नैन मूँद सदा को सो जाती।

दीमक चाटे पुस्तक को ज्यों,
जग का फेरा बड़ा कठिन है।
एक-एक पन्ना समाप्त हो गया,
युग -सा पल-छिन, पल-छिन है।

हँसी विलग-विदा कन्या- सी,
मन -उपवन में घना अंधेरा।
आँखों निचुड़ हुई पत्थर- सी ,
हुआ मन पतझड़ का डेरा।

सूने घर में स्वर लहरी -सी,
एक ध्वनि गूँजे प्रिय तुम्हारी।
कुछ तो ताल बजे ठहरी- सी,
साँसें-लयबद्ध हो गति हमारी।