Last modified on 29 अप्रैल 2019, at 17:27

एक नदी का निर्वासन / अग्निशेखर

मैं तुम्हें भेजता हूँ
अपनी नदी की स्मृति
सहेजना इसे
वितस्ता है

कभी यह बहती थी
मेरी प्यारी मातृभूमि में
अनादि काल से
मैं तैरता था
एक जीवन्त सभ्यता की तरह
इसकी गाथा में

अब बहती है निर्वासन में
मेरे साथ-साथ

कभी शरणार्थी कैम्पों में
कभी रेल यात्रा में
कभी पैदल
कहीं भी

रात को सोती है मेरी उजड़ी नींदों में

नदी बहती है मेरे सपनों में
शिराओं में मेरी
इसकी पीड़ाएँ हैं

काव्य सम्वेदनाएँ मेरी
और मेरे जैसों की
मैं तुम्हें भेजता हूँ स्मृतियाँ
एक जलावतन नदी की