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एक नाव थी फँसी / भावना कुँअर

1,252 bytes added, 12:55, 18 जुलाई 2018
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मझधार मेंएक नाव थी फँसीसवार आयादेख वो घबरायानाव को लेकेथा किनारे लगाया ।बना गहरा मधुर,विलक्षणप्यारा- सा रिश्ता ।कितने सफ़र थेसंग में किएवो सपने सारे ही साकार हुए ।काँटों की राह चलेपीछे ना हटे ।छूट गए सारे हीसगे- संबंधी ।मासूम वो सवारबड़ा नादानछल-कपट भरी,बेदर्द इसदुनिया से अनजान ।बाज़- सा आयाइक नया सवारउसे कहाँ थाभला इसका ज्ञान।ले गया नाववो दूर देश कहींदोनों हैं खुशतिल-तिल मरताआँसू है पीतापर चुप रहताकभी झील कोमझधार को कभीयूँ अपलकनिहारता रहतावो पुराना सवार।
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