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एक नाव थी फँसी / भावना कुँअर

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मझधार में
एक नाव थी फँसी
सवार आया
देख वो घबराया
नाव को लेके
था किनारे लगाया ।
बना गहरा
मधुर,विलक्षण
प्यारा- सा रिश्ता ।
कितने सफ़र थे
संग में किए
वो सपने सारे ही
साकार हुए ।
काँटों की राह चले
पीछे ना हटे ।
छूट गए सारे ही
सगे- संबंधी ।
मासूम वो सवार
बड़ा नादान
छल-कपट भरी,
बेदर्द इस
दुनिया से अनजान ।
बाज़- सा आया
इक नया सवार
उसे कहाँ था
भला इसका ज्ञान।
ले गया नाव
वो दूर देश कहीं
दोनों हैं खुश
तिल-तिल मरता
आँसू है पीता
पर चुप रहता
कभी झील को
मझधार को कभी
यूँ अपलक
निहारता रहता
वो पुराना सवार।