Last modified on 13 अक्टूबर 2017, at 14:58

एक नीलकंठ की मौत / दिनेश श्रीवास्तव

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:58, 13 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पल पल खाकर धोखा
झूठों के हाथों.
कदम कदम फिसल कर
कपट भरी राहों में.
दे दे कर रोज रोज वकासुर को हिस्सा.
नतमस्तक रह करके
मूढ़ों के आगे
कब तक बिखेरूँ
मन मोहक मुस्कान.

आज मुझे रोक मत
उगल लेने दो विष
अब नीलकंठ रह पाना
मेरे बस का नहीं.

थोड़ी देर पहले ही
बता गए काक भुसुंडि जी
कि
"पा करके वरद हस्त
एक नीलकंठ का-
उजाड़ते रहे हैं दुनियाँ
बार बार राक्षस |"

(प्रकाशित- विश्वामित्र, २.२.१९८०)