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एक परदेसी का मिलोंगा नाच / होर्खे लुइस बोर्खेस / उदय प्रकाश

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यह कहानी, हमेशा जैसी वही कहानी है,
हर एक मोड़, हर एक क़दम पर दोहराई जाती :
लोगबाग ब्यूनस आयरस में यही क़िस्सा सुनाते हैं और पूरब में उरुग्वे तक भी, यही कहानी ।

हमेशा वही दो पात्र होते हैं इस कहानी के
एक अजनबी और एक गॉंव-मोहल्ले का कोई ।
हमेशा वही एक शाम हुआ करती है ।
सदा वही साँध्यतारा
साँझ के आकाश में चमकता हुआ ।

दोनों ने एक-दूसरे का चेहरा भी पहले नहीं देखा था
न दोनों अब कभी देख पाएँगे आगे
यह लड़ाई रुपए-पैसों को लेकर नहीं है
न किसी औरत का दिल जीतने की ख़ातिर ।

उस परदेसी ने एक आदमी का क़िस्सा सुन रखा है बहुतों से,
जिसकी वीरता और बहादुरी ने उसे मशहूर बना रखा है
अब वह उसे ख़ुद आज़माने के लिए आया है
पूरे मोहल्ले की छान मारता हुआ ।

वह उससे बहुत विनम्रता से कहता है
एक तरफ़ अलग हट जाने को
बिल्कुल शान्त, बिना किसी धमकी की आवाज़ में,
वे दोनों जानते हैं, दोनों में से कोई भी इस घर की इज़्ज़त में
कोई खरोंच, कोई बट्टा नहीं लगने देना चाहता ।

अब, ख़ँजर हवा में चमकने लगे,
अब जँग की शुरूआत हुई ।
अब एक निस्पन्द सड़क पर गिरा
बिना कोई आवाज़ निकाले…बिल्कुल निश्शब्द ।

उस शाम के पहले वे कभी नहीं मिले थे ।
अब वे कभी भी नहीं मिलेंगे, दोबारा ।
यह न कोई लोभ था न लालच जिसके चलते यह शुरू हुआ
और न था किसी औरत के लिए प्यार ।

फ़ालतू है बेहतर हुनरमन्द होना,
फ़ालतू है अधिक चुस्त-दुरुस्त होना;
हमेशा, हर बार, वही मरा करता है
जो जाता है इस सब की खोज में ।

दोनों अपनी सारी ज़िन्दगी
इसी इम्तहान के लिए जीते रहे ।

वक़्त ने पहले ही उनके चेहरों को मिटा डाला है —
अब जल्द ही उनका नाम भी मिट जाएगा।

मूल स्पानी से अनुवाद :उदय प्रकाश