भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक पेड़ काशी मा जामा हो / बघेली
Kavita Kosh से
Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:27, 20 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बघेली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatBag...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
एक पेड़ काशी मा जामा हो
अरे डार गई जगन्नाथ हो
काशी मा जामा
फूलत फूल द्वारिका मोरे प्यारे
कि फर लाग्यों बद्रीनाथ हो
मटुक वाले