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एक पेड़ का गिरना / गौरव पाण्डेय

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जब गिरा नीम का पेड़ द्वार पर
तब जाना
पेड़ का गिरना केवल पेड़ का गिरना नहीं है
एक हरे-भरे संसार का उजड़ना है
जड़ों का उखड़ना है

द्वार को दौड़ी थी माँ अदहन छोड़ चूल्हे पर
पड़ोस भागा इस ओर
कहीं रो उठा था एक शिशु चौंककर
दीवार के सहारे लुढ़ुक गए दादा जी दर पर
जगह से आठ कदम पिछिल-भागा कुत्ता
बिसूर रहें
कभी पेड़- कभी चिड़ियों के घोसले
                                             (हाय दई देख रे!)

चीं- ~चीं ~ चूं ~चूं ~की ध्वनियों के बीच
उड़ती-उतरती है चिड़िया
घोसले के आस-पास बार -बार
बार-बार
हवा में तिरता है दुःख अबूझ स्वर-लिपि में
हम मूक-बधिर से खड़े चुप इसे कब समझ पाते

हम कहाँ समझ पाते
वह
जो समझ पाते हैं बच्चे
जो खड़े हैं देखो मुँह लटकाएं-रुआंसे

झूला पड़ता था इसी पेड़ पर
इसी पेड़ की छाती पर फुदकते थे वे भूखे-प्यासे।