भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक प्रश्न / विजया सती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने भी देखा होगा

बरसने से पहले

बदराया आसमान

नीली ज़मीन पर

सफ़ेद फूलों-सा छाया आसमान


तुमने भी देखा होगा

सूर्योदयी कलरव के बीच

लजीली अंगडाई लेता

गुलाबी आसमान


भरी दोपहर

बुरी तरह तमतमाया आसमान

साँझ ढले थका-मांदा पीला पड़ा आसमान

और कभी ठहर कर

हवा में हाथ हिलाता

धब्बेदार आसमान

तुमने भी तो देखा होगा!


फिर हताशा क्यों ?

इतने रंग बदलता है जब आसमान

हम तो फिर इंसान हैं!