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एक प्रेम कविता / कुमार विकल

यह गाड़ी अमृतसर को जाएगी

तुम इसमें बैठ जाओ

मैं तो दिल्ली की गाड़ी पकड़ूँगा

हाँ, यदि तुम चाहो

तो मेरे साथ

दिल्ली भी चल सकती हो

मैं तुम्हें अपनी नई कविताएँ सुनाऊँगा

जिन्हें बाद में तुम

अपने दोस्तों को

लतीफ़े कहकर सुना सकती हो.


तुम कविता और लतीफ़े के फ़र्क को

बख़ूबी जानती हो

लेकिन तुम यह भी जानती हो

कि ज़ख़्म कैसे बनाया जाता है


वैसे मैं अमृतसर भी चल सकता हूँ

वहाँ की नमक—मण्डी का नमक मुझे ख़ास तौर से अच्छा लगता है.