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एक भावना / हरिनारायण व्यास

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इस पुरानी जिन्दगी की जेल में
जन्‍म लेता है नया मन।
मुक्‍त नीलाकाश की लम्‍बी भुजाएँ
हैं समेटे कोटि युग से सूर्य, शशि, नीहारिका के ज्‍योति-तन।
यह दुखी संसृति हमारी,
स्‍वप्‍न की सुन्‍दर पिटारी
भी इसी को बाहुओं में आत्‍म-विस्‍मृत, सुप्‍त निज में ही
सिमट लिपटी हुई है।
किन्‍तु मन ब्रह्माण्‍ड इससे भी बड़ा है
जो कि जीवन कोठरी में जन्‍म लेता है नया बन
आज इस ब्रह्माण्‍ड में ही उठ रहा है
प्रेरणा का जन्‍म जीवन-भरा स्‍पन्‍दन-भरा
आषाढ़ का सुख-पूर्ण धन।
रुग्‍ण जन-जन,
युद्ध-पथ पर लड़खड़ाता हाँफता
हर चरण पर भीति से बिजली सरीखा काँपता
तोड़ने को आतुर हुआ यह क्षुद्र बन्‍धन
आँज कर पीले नयन में ज्‍योति का धुँधला सपन।
जल रहीं प्राचीनताएँ बाँध छाती पर मरण का एक क्षण।
इस अँधेरे की पुरानी ओढ़नी को बेध कर
आ रही ऊपर नये युग की किरण।