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एक मासूम प्यार की आशा / रंजना भाटिया

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रचना यहाँ टाकाश मैं होती धरती पर बस उतनी
जिसके उपर सिर्फ़ आकाश बन तुम ही चल पाते
या मैं होती किसी कपास के पौधे की डोडी
जिसके धागे का तुम कुर्ता बना अपने तन पर सजाते
या मैं होती दूर पर्वत पर बहती एक झरना
तुम राही बन वहाँ रुक के अपनी प्यास बुझाते
या मैं होती मस्त ब्यार का एक झोंका
जिसके चलते तुम अपने थके तन को सहलाते
या मैं होती दूर गगन में टिमटिम करता एक तारा
जिसकी दिशा ज्ञान से तुम अपनी मंजिल पा जाते
यूँ ही सज जाते मेरे सब सपने बन के हक़ीकत
यदि मेरी ज़िंदगी के हमसफ़र कही तुम बन जाते !! इप करें