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एक मीठी याद, यारो, उम्र भर खोती नहीं / सुरेन्द्र सुकुमार

एक मीठी याद, यारो, उम्र भर खोती नहीं
दर्द सीने में कभी भी ज़िन्दगी बोती नहीं

ग़म बहुत खुद्दार हैं उनके यहाँ जाते नहीं
जिनके घर में उनकी कोई पूछ-गछ होती नहीं

मांग लेगा रंग सूरज एक दिन अपने सभी
एक तितली रात भर इस खौफ़ से सोती नहीं

जो उजाले मांगते हैं उनको डस लेती है धूप
छाँह कन्धों पर कभी भी धूप को ढोती नहीं

आँख से झरकर गिरीं हैं ख़्वाब वाली चाहतें
भर गया दामन समूचा एक भी मोती नहीं
 
आदमी ही सिर्फ़ मुस्तक़बिल के पीछे भागता
कोई चिड़िया कल की चिन्ता में कभी रोती नहीं