भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक मृत्युशय्या / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:44, 17 मार्च 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"ये राज है वो जो कानून से ऊपर है
इस राज का अस्तित्व है केवल राज के लिए"
[ये एक ग्रंथि है जो इस जबड़े के पीछे है
और एक गाँठ कॉलर-बोन की तरफ ये]

कुछ लोग गैस या आग में चीखते हुए मरते हैं
कुछ मरते हैं चुपचाप, बम और गोली से
कुछ हताश मरते हैं, तार के संपर्क में आकर
कुछ मरते हैं अचानक. पर अचानक नहीं आएगी इसे.

"राजा की इच्छा सर्वोच्च कानून है"
[हलक की तरफ़ बढ़ेगा अब ये प्रायिक सिलसिला]
कुछ लोग मरते हैं किसी टूटे नाव का टुकड़ा चुभने से
कोई नावों के बीच सिसकते हुए मरा

कुछ मरते हैं स्पष्ट, जब कि दोस्त सुन सकते हैं
मृत्यु की तरफ धकेलते हैं फिसलन भरे खंदक
कुछ मर जाते हैं एक आधी साँस में
कुछ―तकलीफ़ देते हैं आधा साल तक

"ज़िंदगी में कुछ भी अच्छाई या बुराई नहीं होती
निर्भर करता है राजाज्ञा की ज़रूरत पर सब"
[क्योंकि ये चीरफाड़ के लिए बहुत देर हो चुकी है
हम कुछ कर सकते हैं तो बस दर्द को कम अब]

कुछ मरते हैं संतों की तरह आशा और विश्वास में
इसी तरह एक मरा था आँगन में जेल के
कुछ बलात से टूटकर या फाँसी लगाकर मरते हैं
कुछ सहज ही मर जाते हैं. पर मुश्किल से मिलेगी इसे

"जो भी मेरे रास्ते में आएगा मैं उसके टुकड़े कर दूँगा
दुख है गद्दार के लिए, दुख है कमज़ोर के लिए"
[उसे लिखने को दे दो जो भी वो कहना चाहे
बोलने का प्रयास थका मारेगा उसे]

कुछ मरते हैं शांति से, कुछ फट पड़ते हैं
आत्मतरस के तेज शोर से.
कुछ बुरी नैतिकता सिखा जाते है आसपास के लोगों को..
पर अच्छी साबित होगी इसकी ये

"वह युद्ध मेरे दुश्मनों द्वारा लादा गया था मुझ पर
मैंने जो कुछ किया अपनी ज़िन्दगी चाही बस"
[तीसरे ख़ुराक से डरो नहीं अब
दर्द कम हो जाएगा दे रहे हैं आधी बस

यहाँ पर सूईयाँ हैं, ध्यान रखना कि वो मर जाए
जब तक में कि दवा का असर ज़ारी रहे
..क्या पूछ रहा है वह अपनी आँखों से?
हाँ हाँ, हुज़ूर, स्वर्ग में, बिल्कुल! तय है]

{इस कविता में तीन आवाज़ें हैं: 1- उद्धरणों में गले के कैंसर से पीड़ित एक तानाशाह की, 2- कोष्ठक में उसका इलाज कर रहे डॉक्टरों की, 3- और तीसरी एक टीकाकार की।

यह कविता रानी विक्टोरिया के सबसे बड़े पोते जर्मनी के राजा 'कैसर विल्हेल्म' को 'थ्रोट कैंसर' होने की ख़बर छपने पर लिखी गयी थी (हालाँकि ख़बर ग़लत थी)। टीकाकार कविता में उन सारी तरह की मौतों का उल्लेख करता है जो 'कैसर' के युद्धों में हुईं।

इस कविता को किपलिंग की 'मोस्ट सेवेज' कविता कहते हैं यानी 'सबसे बदतहज़ीब'}