"दोस्त ! क्यों ये आँखें नम?
अच्छा
कैसी है, कहाँ है, बताओ जरा
भई, हमसे नहीं देखा जाता
तुम्हारा यह गम"
"नहीं, दोस्त ! घर में आटा ख़तम
कहाँ आँखें नम?
यूँ ही कुछ कोयला-वोयला पड़ गया होगा-
"अच्छा यार, मिलेंगे फिर
इस वक़्त फ़ुरसत है कम"
(वाह रे वाह आदम !)