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एक सूखी नदी / धीरेन्द्र अस्थाना

नदी
जो कभी
भरी थी यौवन से,
सदियों की
सभ्यताएं
करती थीं
अठखेलियाँ
इसकी उर्मियों में;
अब
सूख चुकी है
पूरी तरह
अवशेषित और
लुप्त हो गयी है!

हाँ,
इसकी तलहटी में बसे
गाँवों को
बाढ़ का खतरा
नहीं है अब;
"कर्मांशा"
हार चुकी है!

लेकिन
इसके दोनों ओर
हरे जंगल
और वन्य जीव
भी लुप्त हो गए हैं;
समय के साथ
अब किसी
पूर्णिमा या
अमावस पर
नहीं लगता
जमावड़ा
दूर-दूर से
आये हुए
जन सैलाबों का;

लेकिन
इसके दोनों ओर
हरे जंगल
और वन्य जीव
भी लुप्त हो गए हैं;
समय के साथ
अब किसी
पूर्णिमा या
अमावस पर
नहीं लगता
जमावड़ा
दूर-दूर से
आये हुए
जन सैलाबों का;
लेकिन
इसके दोनों ओर
हरे जंगल
और वन्य जीव
भी लुप्त हो गए हैं;
समय के साथ
अब किसी
पूर्णिमा या
अमावस पर
नहीं लगता
जमावड़ा
दूर-दूर से
आये हुए
जन सैलाबों का;

नदी के सूखने पर
नष्ट हो जाती हैं
सदियों की संस्कृति
और सूख जाया करती हैं
सभ्यताएं!