भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक स्त्री का प्रेम / सीमा संगसार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 6 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा संगसार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक स्त्री को पढ़ना
गढ़ना होता है
इतिहास और संस्कृति को
उनके रीति रिवाजों
और उनके मान्यताओं को
जो हर युग म़े
भिन्न भिन्न परिवेश में
बदलती रहती है...

उनकी सीमाएँ
कभी खत्म नहीं होती
किसी नक्शे की तरह
वह एक ही खांचे में
ढाली जाती हैं
भिन्न-भिन्न परिवेश में
किसी विलुप्त प्राणी की तरह...

एक स्त्री का प्रेम
सामंती होता है
हर युग में
जिसकी परिणीति
दीवारों में चुनवाने से आरंभ
और जौहर पर खत्म होती है...

प्रेम में समर्पित स्त्री
अक्सर
शतरंज की रानी होती हैं
जिसे
शहजादे की शह के लिए
खुद को मात देना पड़ता है...