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एक ही छत / सुरंगमा यादव

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56
कुहू के बोल
दादुर क्या समझें
इनका मोल।
57
झील में चाँद
उमस भरी रात
नहाने आया।
58
माटी है एक
एक ही कुम्भकार
नाना आकार।
59
एक ही ज्योति
हर घट भीतर
कैसा अंतर !
60
कहे प्रकृति
‘स्व’ और ‘पर’ पर
हो समदृष्टि।
61
मेघ कहार
दूर देश से लाया
वर्षा बहार।
62
नित नवीन
प्रकृति की सुषमा
नहीं उपमा।
63
आँचल हरा
ढूँढ़ती वसुंधरा
कहीं खो गया।
64
थक के सोया
दिवस शिशु सम
साँझ होते ही ।
65
मौन हो गये
ये विहग वाचाल
निशीथ काल।
66
एक ही छत
कमरों की तरह
बँटे हैं मन