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एक ही पीड़ा हर लब की है / हरि फ़ैज़ाबादी

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एक ही पीड़ा हर लब की है
सारी दुनिया मतलब की है

अपना तो बस नेक इरादा
आगे मर्ज़ी उस रब की है

आज ख़ुदा बस रोटी दे दे
दाल बची कुछ कल शब की है

हम क्यों मानें उर्दू भाषा
केवल मुस्लिम मज़हब की है

तिलक लगाओ चाहे चूमो
मिट्टी पावन मकतब की है

दरवाज़ा क्या जाने घर में
किसकी आमद जब-तब की है

चाँद भले है आसमान का
खिली चाँदनी हम सब की है